कोई आधार ढूंढे तो
मुझे मेरी माँ दिखती है
मुझमे संस्कार ढूंढे तो
मुझे मेरी माँ दिखती है
मेरे चेहरे की हर खुशियाँ
मेरे अन्दर का एक इंसा
गढ़ा है खुद को खोकर जो
मुझे मेरी माँ दिखती है
कोई ढूंढे तो क्या ढूंढे
इस दुनिया में एक नेमत को
बहुत साबित कदम हरदम
मुझे मेरी माँ दिखती है
अजान के बोल से जगती
लिए मुस्कान ओंठो पर
शुबह से शाम तक चंचल
मुझे मेरी माँ दिखती है
दिया हिम्मत ज़माने में
रुका जब भी थक कर मै
जब कोई राह नहीं दिखता
मुझे मेरी माँ दिखती है
रिश्तो के चेहरों में
शिकन आ हीं जाते हैं
जो बदले नहीं कभी
मुझे मेरी माँ दिखती है ..
अरशद अली
8 comments:
behtar....
aur jaruri rachna.
aisi rachna ke liye dhanywad,
thnx
सुन्दर,अति-सुन्दर.... अर्शद जी---
कण कण में मुझे मां दिखती है....
जीवन की हर एक सफ़लता,
की पहले सीडी होती मां ॥
bhut hi khoobsoorti se ma ke liye apne dil ke jjbat pesh kiye .
भिक्षाटन करता फिरे, परहित चर्चाकार |
इक रचना पाई इधर, धन्य हुआ आभार ||
http://charchamanch.blogspot.com/
बहुत सुन्दर...बधाई
ईद मुबारक आप एवं आपके परिवार को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ..सुगना फाऊंडेशन मेघलासिया
ईद पर विशेष अनमोल वचन
सभी रचनाएँ अच्छी हैं परंतु यह कविता प्रेरणादायक है।
Very nice
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