Monday, March 28, 2011

मुझे मेरी माँ दिखती है.............अरशद अली

कोई आधार ढूंढे तो
मुझे मेरी माँ दिखती है
मुझमे संस्कार ढूंढे तो
मुझे मेरी माँ दिखती है

मेरे चेहरे की हर खुशियाँ
मेरे अन्दर का एक इंसा
गढ़ा है खुद को खोकर जो
मुझे मेरी माँ दिखती है

कोई ढूंढे तो क्या ढूंढे
इस दुनिया में एक नेमत को
बहुत साबित कदम हरदम
मुझे मेरी माँ दिखती है

अजान के बोल से जगती
लिए मुस्कान ओंठो पर
शुबह से शाम तक चंचल
मुझे मेरी माँ दिखती है

दिया हिम्मत ज़माने में
रुका जब भी थक कर मै
जब कोई राह नहीं दिखता
मुझे मेरी माँ दिखती है

रिश्तो के चेहरों में
शिकन आ हीं जाते हैं
जो बदले नहीं कभी
मुझे मेरी माँ दिखती है ..


अरशद अली

Thursday, March 17, 2011

.तुम तो लक्ष्मी थी...सारा बैभव ले गयी ........अरशद अली

शांत घर,सिर्फ तुम्हारे जाने से नहीं हुआ
तुम तो लक्ष्मी थी...सारा बैभव ले गयी

एक सिंदूर पड़ते हीं
तुम्हारा गावं बदल गया
और बदल गयी तुम्हारी पहचान ..

मुझे याद है,
तुम्हारे आने पर ,तुम्हारी माँ
अकेले जश्न मनाई थी
और मेरी माँ चिंतित दिखी थी ..

कल वो भी रो पड़ी थी
शायद वो तुम्हारे स्नेह का
उमड़-घुमड़ था
या एक बोझ उतर जाने के ख़ुशी

अब सब शांत है और कान चौकन्ना,
तुम्हारी एक आवाज़ सुनने को ..
जो शायद न मिले
और मिले भी तो सजी हुई
किसी और के धुन में ..

अब तो तुम्हारा इंतज़ार भी
किसी और के लिए है
नहीं तो बचपन में घंटों
अपने बाबा का बाट जोहती थी

तुम्हारे हठ से झुंझलाने के क्रम में भी
तुम हठ करना नहीं भूलती थी
और मै पूरा करने से नहीं चूकना चाहता था
अब उसी हठ को तरसता हूँ ...

तुम बेटी थी,तुम बहन थी
और कभी-कभी माँ जैसा दुलार भी दिया था तुमने
जब मै बुखार से तपता था
बेटी,बहन को बिदा किया ,समाज के नियमों पर
मगर नन्ही हांथों वाली
उस माँ को तरसता हूँ

प्रतेक दिन तुम नयी जिम्मेदारियों को
समझते जाओगी ,मुझे पूर्ण विश्वास है
और मै जर्जर तुम्हे बड़ी होते हुए देखूंगा
और एक दिन तुम केंद्र में होगी
जैसे आज तुम्हार माँ है ..
जिसने मुझे-तुम्हे आज तक सहेजा..और आगे भी सहेजेगी ..

आज तुम उर्वर हो
और मै वो आम का पेड़,
जिसपर वो आम नहीं
जिससे मेरी पहचान थी....

तुम तो लक्ष्मी थी ....
सारा बैभव ले गयी ........


अरशद अली