Monday, November 15, 2010

पगडंडियों के रास्ते...........

दादा जी को कहते सुना है...
"पगडंडियों के रास्ते हमारे गावं में खुशहाली आएगी" .
पत्तों से छानते पानी से प्यास बुझाते लोग
अपने खेतों में पसीना बहाना जानते हें.
अभी भी बैलों को जोतने से पहले
जलेबी खिलाया जाता है.
बिजली आएगी...बिजली आएगी
कहते कहते मेरा बचपन खो गया..
अब नए खेप के बच्चे कहते हें
बिजली आएगी बिजली आएगी...
दशकों पहले गड़े पोल के अवशेष
श्रीकांत सिंह के सब्जी बड़ी में मिल जायेंगे...
कटीले तार के घेरे में आधार बन
सब्जी बचाते हुए .
चौकीदार अभी भी
दो रुपये प्रति घर रखवाली करता है.
मल्लाह सालाना दो किलो धान पर
गंगा पार करता है.
बच्चे अभी भी चमचमाते गाड़ी के पीछे
भागने से गुरेज़ नहीं करते.
बूढी दादी मेहमानों के लिए सुखी मिठाई
छुपा कर रखती है.
अभी भी दादी अपने
भाइयों से मिल कर रोंती है
शायद कह रही हो ..
मुझे इस गावं में क्यों ब्याहा
जहाँ रोड नहीं..
और रोड आने की संभावना भी नहीं..
और दादा जी यही कहते....
"पगडंडियों के रस्ते हमारे गावं में खुशहाली आएगी".

-------अरशद अली----

Tuesday, November 9, 2010

मुझे इस ब्लॉग की ज़रूरत क्यों पड़ी........अरशद अली

कई दिनों से सोंच रहा था, एक ऐसे ब्लॉग का रचना करूँ जिसमे ...गावं की महक हो ...रिश्तों की गर्माहट हो ...जहाँ हम सभी एक
बंधन में बंध जाएँ ...जिसमे लिखे पोस्ट हर इन्सान पर सटीक बैठता हो ...गावं मेरा हो या आपका होगा तो लगभग एक हीं जैसा..दादी मेरी या आपकी,होंगी तो एक हीं जैसी ...ममता से भरी हुई ..चश्मा लगा कर भी बड़े प्यार से पूछती हुई ...बेटा अरशद या अमज़द...और बहुत चिल्ला-चिल्ला कर मेरा ये ये बताना की दादी मै अरशद .... और उनका मुझे छू छू कर बात करना...ऐसी ऐसी हीं कई छोटी छोटी बातें जो आप भी महसूस करते हें ...

मेरे इस ब्लॉग पर आपको मिटटी की महक रिश्तों की गर्माहट ...कविता,आलेख,कहानी या संस्मरण के स्वरूप में मिलेगा ...इस ब्लॉग को सफल बनाने में आपकी योगदान की आवश्यकता है ... आपके सलाह का मुझे इंतजार रहेगा...आप मुझे मेल कर सकते हैं - arshad.ali374@gmail.com .

क्या इस ब्लॉग में मै अन्य सदस्य जो इस ब्लॉग के लिए पोस्ट लिखे,शामिल कर सकता हूँ..अगर हाँ तो कैसे? इसके लिए मुझे क्या करना होगा ..आप बताएँगे तो मुझे ख़ुशी होगी .

आपका
अरशद अली